उड़द दाल की खेती भारत में हजारों साल पहले से हो रही है। यह माना जाता है कि उड़द दाल भारतीय उपमहाद्वीप की ही खोज है। इस दाल को बाद के वक्त में पाकिस्तान, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे देशों ने अपना लिया। उड़द की दाल भारत में उपनिषद काल से इस्तेमाल की जा रही है। माना जाता है कि इसके इस्तेमाल से पेट संबंधित बीमारी, मानसिक अवसाद आदि दूर होते हैं।
फायदेमंद है उड़द की खेती
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उड़द की खेती फायदेमंद होती है। इसका बाजार में बढ़िया रेट मिल जाता है। इसकी खेती के लिए मौसम का अनुकूल होना पहली शर्त है। यह माना जाता है कि जब शीतकाल की विदाई हो रही हो और गर्मी आने वाली हो, तब का मौसम इसकी खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। उस लिहाज से देखें तो पूरे फरवरी माह में आप उड़द की खेती कर सकते हैं। शर्त यह है कि बहुत ठंड या बहुत गर्मी नहीं होनी चाहिए।
70 से 90 दिनों में फसल तैयार
उड़द की फसल को तैयार होने में बहुत वक्त नहीं लगता। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर फरवरी के मध्य में उड़द की खेती की जाए कि फसल मई के मध्य में आराम से काटी जा सकती है। कुल मिलाकर 80 से 90 दिनों में उड़द की फसल तैयार हो जाती है। हां, इसके लिए जरूरी है कि बारिश न हो। अगर फसल लगाने के पंद्रह रोज पहले हल्की बारिश हो गई तो वह बढ़िया साबित होती है। लेकिन, अगर फसल के बीच में या फिर कटने के टाइम में बारिश हो जाए तो फसल के खराब होने की आशंका रहती है।
आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा होती है खेती
इसलिए, उड़द की खेती पूरी तरह मौसम के मिजाज पर निर्भर है और यही कारण है कि जहां मौसम ठीक रहता है, वहीं उड़द की खेती भी होती है। इस लिहाज से भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में उड़द की खेती सबसे ज्यादा होती है। शेष राज्यों में या तो खेती नहीं होती है या फिर बहुत की कम। उपरोक्त तीनों बड़े राज्यों का मौसम राष्ट्रीय स्तर पर आज भी काफी अनुकूल है।
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जमीन का चयन
उड़द की खेती के लिए बहुत जरूरी है जमीन का शानदार होना। यह जमीन हल्की रेतीला, दोमट अथवा मध्यम प्रकार की भूमि हो सकती है जिसमें पानी ठहरे नहीं। अगर पानी ठहर गया तो फिर उड़द की खेती नहीं हो पाएगी। तो यह बहुत जरूरी है कि आप जहां भी उड़द की खेती करना चाहें, उस जमीन पर पानी का निकास बढ़िया हो।
समतल जमीन है जरूरी
जमीन के चयन के बाद यह जरूरी होता है कि वहां तीन से चार बार हल या ट्रैक्टर चला कर खेत को समतल कर लिया जाए। उबड़-खाबड़ या ढलाऊं जमीन पर इसकी फसल कामयाब नहीं होती है। बेहतर यह होता है कि आप तब पौधों की बोनी करें, जब वर्षा न हुई हो। इससे पैदावार बढ़ने की संभावना होती है।
खेती का तरीका
कृषि वाज्ञानिकों के अनुसार, उड़द की अधिकांश फसलें प्रकाशकाल में ही बढ़िया होती हैं। यानी, इन्हें पर्याप्त रौशनी मिलती रहनी चाहिए। मोटे तौर पर 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान इनके लिए सबसे बढ़िया होता है। इसमें रोज पानी देने का झंझट नहीं रहता। हां, खर-पतवार तेजी से हटाते रहना चाहिए और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव जरूर करते रहना चाहिए। उड़द की फसल में कीड़े बहुत तेजी के साथ लगते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि फसल के आधा फीट के होते ही कीटनाशकों का छिड़काव शुरू कर दिया जाए।
टी-9 (75 दिनों में तैयार हो जाता है)
पंत यू 30 (70 दिनों में तैयार हो जाता है)
खरगोन (85 दिनों में तैयार हो जाता है)
पीडीयू-1 (75 दिनों में तैयार हो जाता है)
जवाहर (70 दिनों में तैयार हो जाता है)
टीपीयू-4 (70 दिनों में तैयार हो जाता है)
कैसे करें बुआई
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि उड़द का बीज एक एकड़ में 6 से 8 किलो के बीच ही बोना चाहिए। बुआई के पहले बीज को 3 ग्राम थायरम अथवा 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो के आधार पर उपचारित करना चाहिए। हां, दो पौधों के बीच में 10 सेंटीमीटर की दूरी जरूर होनी चाहिए। दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर की दूरी आवश्यक है। बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए।
हां, बीज को कम से कम 5 सेंटीमीटर की गहराई में ही बोना चाहिए।
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निदाई-गुड़ाई
उड़द की फसल को ज्यादा केयर करने की जरूरत होती है। यह बहुत जरूरी है कि आप उसकी निदाई-गुड़ाई समय पर करते रहें। बड़ा उत्पादन चाहें तो आपको यह काम रोज करना पड़ेगा। अत्याधुनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी है। अन्यथा ये कीट आपकी फसल को बर्बाद कर देंगे। माना जाता है कि कीटनाशक वासालिन को 250 लीटर पानी में 800 एमएल डाल कर छिड़काव करना चाहिए।
अकेले बोना ज्यादा बेहतर
माना जाता है कि उड़द को अगर अकेला बोया जाए तो 20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सबसे उचित मानक है। ऐसे ही, अगर आप उड़द के साथ कोई अन्य बोते हैं तो प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलोग्राम उडद का बीच बेहतर होता है।
उड़द के अन्य फायदे
उड़द दाल के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद में इसका जम कर इस्तेमाल होता है। अगर आपको सिरदर्द है तो उड़द दाल आपको राहत दे सकता है। आपको बस 50 ग्राम उड़द दाल में 100 मिलीलीट दूध डालना है और घी पकाना है। उसे आप खाएं। आपकी तकलीफ दूर हो जाएगी। इसके साथ ही, बालों में होने वाली रूसी से भी आपको उड़द दाल छुटकारा दिलाती है। आप उड़द का भस्म बना कर अर्कदूध तथा सरसों मिलाकर एक प्रकार का लेप बना लें। इसके सिर में लगाएं। एक तो आपकी रूसी दूर हो जाएगी, दूसरे अगर आप गंजे हो रहे हैं तो हेयर फाल ठीक हो जाएगा।
कुल मिलाकर, अगर आप फरवरी में वैज्ञानिक विधि से उड़द की खेती को लेकर गंभीर हैं तो वक्त न गंवाएं। पहले जमीन समतल कर लें, तीन-चार बार हल-बैल या ट्रैक्टर चला कर उसके घास-फूस अलग कर लें, फिर 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज रोपित करें और लगातार क्यारियों की साफ-सफाई करते रहें। 70 से 90 दिनों के बीच आपकी फसल तैयार हो जाएगी। आप इस फसल का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं।
उड़द की खेती के लिए हलके नम और गर्म मौसम की जरूरत होती है. हालांकि की उड़द की फसल की ज्यादातर किस्में काफी संवेदी होती हैं. इसकी फसल को बढ़ने के लिए लगभग 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इअकी फसल 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान भी आसानी से सह सकती है. उड़द को आसानी से उगाने के लिए बारिश वाली जगहें भी उपयुक्त होती हैं. खासकर वहां जहां पर 600 से 700 मिमी बारिश हो. ज्यादा जल भराव वाली जगहों पर इसकी खेती नहीं की जा सकती. फसल में जब फूल हों या वो पकने की अवस्था में हो, तो बारिश इस फसल को बर्बाद कर सकती है.
कैसे करें भूमि का चयन?
उड़द की खेती कई तरह की जमीन में की जा सकती है. जिसमें से हल्की रेतेली, दोमट या फिर मीडियम तरह की जमीन जिसमें, पानी का निकास अच्छी तरह से हो, ऐसी जमीन उपयुक्त रहती है. उड़द की उपजाऊ जमीन के लिए उसका पी एच मां 7 से 8 के बीच का होना चाहिए. बारिश के शुरू होने से पहले ही इसके पौधे की अच्छी ग्रोथ हो जाती है. खेत समतल हो और पानी का निकास अच्छा हो, इसका ध्यान भी देना बेहद जरूरी है.
उड़द की उन्नत किस्मों के बारे में
टी-9 उड़द की किस्म को पकने में करीब 70 से 75 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार की बात करें तो 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसकी पैदावार होती है. इसका बीज मीडियम छोटा, हल्का काला और मीडियम ऊंचाई वाला पौधा होता है.
पंत यू-30 उड़द की किस्म को पकने में 70 दिनों का समय लगता है. वहीं इसकी पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके दाने काले और मीडियम आकार के होते हैं. जो पीला मौजेक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.
खरगोन-3 उड़द की किस्म को पकने में 85 से 90 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका दाना बड़ा और हल्का काला होता है. इसका पौधा फैलने वाला होता है.
पी डी यू-1 उड़द की किस्म को पकने में 70 से 80 दिनों का समय लगता है. इसकी औसत पैदावार 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका दाना काला बड़ा और जायद के सीजन के लिए बेहतर होता है.
जवाहर उड़द-2 किस्म की उड़द की फसल को पकने में 70 दिनों का समय लगता है. इसकी पैदावार 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके बीज मीडियम छोटे चमकीले काले, तनी पर फलियां आस पास के गुच्छों में लगती है.
जवाहर उड़द-3 उड़द की किस्म को पकने में 70 से 75 दिनों का समय लगता है. इसके पैदावार अन्य की तुलना में कम यानि की 4 से 4.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसके बीज मीडियम छोटे और इसका पौधा कम फैलने वाला होता है.
टी पी यू-4 उड़द की किस्म 70 से 75 दिनों में पककर तैयार होती है. इसकी पैदावार भी 4 से 4.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है. इसका पौधा मीडियम ऊंचाई वाला सीधा होता है.
फसल में कैसी हो खाद और उर्वरक?
उड़द की फसल दलहनी फसल होती है. जिसे ज्यादा नत्रजन की जरूरत नहीं होती. पौधों की शुरूआती अवस्था में जब तक जड़ों में नत्रजन एकत्र करने वाले जीवाणु काम करते रहते हैं, तब तक के लिए 15 से 20 किलो नत्रजन 40 से 50 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीजों की बुवाई के कते समय मिट्टी में मिला दें. पूरी खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों में बीज के नीचे डालें.
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कितनी हो बीज की मात्रा?
उड़द के बीज को प्रति एकड़ के हिसाब से 6 से 8 किलो की मात्रा में बोना चाहिए. बुवाई के पहले बीज के तीन ग्राम थायरम या ढ़ाई ग्राम डायथेन एम-45 से उपचारित कर लें. इसके अलावा बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा फफूंद नाशक को तकरीबन 5 से 6 ग्राम प्रति किलो की दर से इस्तेमाल किया जा सकता है.
क्या है बुवाई का सही तरीका?
बारिश के मौसमे के आने पर या जून के आखिरी हफ्ते में भरपूर बारिश होने पर उड़द के बीजों की बुवाई करें. इसकी बुवाई तिफन या फिर नाली में कर सकते हैं. जहां कतारों की दूरी करीब 30 सेंटी मीटर और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सेंटी मीटर की होनी चाहिए. बीज को 4 से 6 सेंटी मीटर की गहराई पर बोएं. गर्मियों के सीजन में इसकी बुवाई फरवरी के आखिरी तक या अप्रैल के पहले हफ्ते में कर लेनी चाहिए.
कैसे करें सिंचाई?
उड़द की खेती में आमतौर पर बारिश के मौसम में सिचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन इसकी फली बनते वक्त अगर खेत में भरपूर नमी नहीं है तो एक सिंचाई जरुर कर देनी चाहिए. जायद के सीजन में उड़द की खेती के लिए तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. जिसके लिए पलेवा करने के बाद बीजों की बुवाई की जाती है. जहां दो से तीन सिंचाई 15 से 20 दिनों के अंतर में करनी चाहिए. फसल में जब फूल बनें तो खेत में पर्याप्त नमी हो इसका ध्यान जरुर रखें.
कैसे करें रोग की रोकथाम?
उड़द में लगने वाला समान्य रोग पीला मोजेक विषाणु रोग है. जो वायरस से फैलता है. इसका असर 4 से 5 हफ्ते के बाद नजर आता है. इस रोग में पत्तियों का रंग पीला और धब्बेदार हो जाता है. जिसके बाद पत्तियां सूख जाती हैं. इसका उपचार करके इस पर नियंत्रण किया जा सकता है.
पत्ती मोडन रोग में पत्तियां शिराओं से ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं और नीचे से अंदर की तरफ मुड़ जाती हैं. जिसकी वजह से पत्तियों की ग्रोथ रुक जाती है और पौधे मर जाते हैं. यह एक विषाणु जनित बीमारी है. इससे बचने के लिए थ्रीप्स के लिए एसीफेट 75 फीसद एस पी या 2 मीली डाईमैथोएट प्रति लीटर के हिसाब से स्प्रे बुवाई करते समय ही कर देना चाहिए.
फसल को पत्ती धब्बा रोग से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 1 किलो एक हजार लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
फसक को सेफ मक्खी रोग से बचाने के डायमेथोएट 30 ई सी 2 मिली लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
जब भी कीटनाशी घोल तैयार करें तो उसमें चिपचिपा पदार्थ जरूर मिलाएं. ताकि बारिश का पानी कीटनाशक पत्तियों पर पड़कर घुलकर ना बहे.
धूल कीटनाशकों का छिड़काव हमेशा सुबह ही करें.
किसी की भी सलाह पर दो या उससे ज्यादा कीटनाशकों को ना मिलाएं. मौसम के हिसाब से ही हमेशा कीटनाशकों का इस्तेमाल करें.
जब भी कीटनाशक का घोल तैयार करें तो उसके लिए किसी मग्घे का इस्तेमाल करें. फिर स्प्रे टंकी में पानी से मिलाएं. ध्यान रखें कि, कीटनाशक को कभी भी डायरेक्ट टंकी में ना मिलाएं.
खरपतवार फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. अच्छे उत्पादन के लिए समय समय पर फसल की निदाई और गुड़ाई करनी चाहिए. इसके लिए कुल्पा और डोरा का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके आलवा फसलों में आधुनिक कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए.
कैसे करें उड़द की कटाई?
उड़द की फसल लगभग 85 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. उड़द की फसल की कटाई के लिए हंसिया का इस्तेमाल करें. कटाई का काम कम से कम 70 से 80 फीसद फलियों के पक जाने पर करें. खलियान में ले जाने के लिए फसलों का बंडल बना लेंगे तो काम आसान हो जाएगा.
उड़द की अच्छी पैदावार के लिए आपको हमारी बताई हुई खास बातों को ध्यान में रखते हुए खेती करनी चाहिए. जिससे आपको फायदा भी हो सके और अच्छी इनकम भी हो सके.